बात कुछ ऐसे निकली
जैसे मुट्ठी से रेत !
ताश के पत्तों से गिर पडे
दिल के कुछ अरमान !
आंसू आंखों से यूं निकले
जैसे उमड़ पड़ा हो पानी
तोड़ कर कोई बाँध !
आह जो निकली मुँह से
जैसे जंगल की सर्द हवाएँ
सनसनाती जा रहीं हो
सीना चीर कर पेड़ों का !
ह्रदय में क्षोभ की ज्वाला
धधक रही है अग्नी सी !
कल के खिलखिलाते
मुस्कुराते,गुनगुनाते शब्द
आज वेदना में डूबे से हैं !
लगता है जैसे आज कुछ
अप्रत्याशित सा घट गया है !
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3 comments:
Wahhhh......Ye wah aise nikla jaise tabassum aa jaye dil ki koi tamanna puri ho jane par.Awesome
बहुत ही सुंदर कविता…
काफी दिनों बाद ब्लाग पर आया और अचानक ही आपके इस जाल पर आकर यह रचना पढ़ी बहुत ही अच्छा महसूस किया…। धन्यवाद!!!
मुस्कुराते,गुनगुनाते शब्द
आज वेदना में डूबे से हैं !
लगता है जैसे आज कुछ
अप्रत्याशित सा घट गया है !
--उम्दा भाव, लिखते रहें. शुभकामनायें.
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