Monday, September 10, 2007

शब्दों का जुलाहा

कुछ हल्के ,टूटे शब्दों के धागे
इन शब्दों का ताना बाना
जाने कितनी बार बुना मैंने
जाने कैसे गाँठ लगी
और शब्दों की कतार रुकी
बातों का धागा इतना लम्बा
कहने का भी होश नहीं
पर शुरू करूं कैसे मैं
मुझको मिलता कोई छोर नहीं
बस एक किनारा काफी है
जिस से बातों की चादर को
दे पाऊं मैं कोई आकार
पर इतना आसान नहीं सपना
जो हो जाये जल्दी साकार
कहॉ है तू शब्दों के जुलाहे
मुझको थोड़ी हिम्मत दे दे
दे दे मुझको कोई हुनर
कि ,मैं भी बुन कर सुन्दर सा
अपने शब्दों का ताना बाना
तैयार करूं ऎसी चादर
जिसको ले कर अपने हाथों में
महसूस करे कोई उसमें
ममता,चाहत,प्यार,लगन
और अपनेपन की गर्माहट
इसी लिए ए शब्दों के जुलाहे
मेरी तुझसे विनती है इतनी
सिख्लादे तू बुन ना मुझको
मीठी बातों का ताना बाना
या दिख्लादे मुझको एक छोर
अपनी बातों की चादर में बस
एक किनारा काफी है
बस एक किनारा काफी है

1 comment:

रंजू भाटिया said...

बहुत ही सुंदर लिखती हो तुम ..किस कसी लीन की तारीफ करूँ में
बेहद खुबसुरत है यह

सिख्लादे तू बुन ना मुझको
मीठी बातों का ताना बाना
या दिख्लादे मुझको एक छोर
अपनी बातों की चादर में बस
एक किनारा काफी है
बस एक किनारा काफी है