Friday, September 14, 2007

कुछ बात

उजालों में चिराग जलाए तो क्या हुआ
अंधेरों में दीप जलाओ तो कुछ बात है !
हंसतों के संग हँसदिये तो क्या हुआ
रोतों को तुम हंसाओ तो कुछ बात है !
इस ज़माने में दुखों के मारे तो बहुत हैं
उनके दुखों का बोझ उठाओ तो कुछ बात है !
लहरों संग तैर आये तो क्या हुआ
तूफानों से निकल आओ तो कुछ बात है !
गुलशन में दो फूल लगाये तो क्या हुआ
वीराने में गुल खिलाओ तो कुछ बात है !
दोस्तो में गुजारी है तुमने उम्र सारी
दो पल हमारे संग गुजारो तो कुछ बात है !
महफ़िल में गुजारी हैं रातें तो क्या हुआ
एक शाम हमारे नाम गुजारो तो कुछ बात है !
देखा किये हो औरों को सुबह से शाम तक
एक नज़र इधर भी डालो तो कुछ बात है !
चार कदम संग चल दिए तो क्या हुआ
उम्र भर संग निभाओ तो कुछ बात है !
जनाजे पे अपने यारों के बहाए हैं तुमने अश्क
हम पर भी दो अश्क बहाओ तो कुछ बात है !

3 comments:

शैलेश भारतवासी said...

पर्ल जी,

आपके बहुत सुंदर विचार है। जोश भी भरती है, आशा भी दिखाती है और कुछ करने की प्रेरणा भी देती है। आपको हिन्दी-दिवस पर बधाइयाँ।

Anita kumar said...

क्या बात है, बहुत सुन्दर रचना है, पर्ल जी आपकी। आप हमारे ब्लोग पर आयी और आपको हमारी रचना अच्छी लगी , धन्यवाद, अगर आपका इमेल आयडी मिल जाता तो जवाब जल्दी दे देती

Muhammad Usman said...

gulashan me do fool lagaaye to kya hua
veeraane me gul khilao to kuchh baat hai !


really gorgious !


to kuch baat hai


i wud like to say avsome really wounderful words !


kamal likhi hai ye ghazal ap ney ab is ki tareef karna to mere bass se bahir hai kyon k is ghazal ki khoobsurti mehsoos to ki ja sakti hai but bayan karna thora mushkil hai ! khair keep it up