Tuesday, September 11, 2007

सागर और मैं

आज पूनम की रात
सफ़ेद फैली चांदनी
दूर तक फैला काला सागर !
लहरों से उफनता हुआ किनारा
और वहीँ किनारे बैठी मैं !
सोच रही थी शायद आज
चांद को छूने की ललक में
आकाश की और उठती हैं लहरें !
जानती हैं ,नही छू पायेंगी
फिर भी जाने क्यूं उठती हैं लहरें !
उफनते सागर का वही किनारा
और पास ही बैठी मैं !
देख रही थी सागर की नियति !
बड़ी काली लहरों का आना
और किनारों से टकरा कर
फिर सागर में मिल जाना !
हर एक राही पास आता है
बस ,दो पल बैठ वहीँ किनारे
देख उफनता रौद्र रुप
फिर वापिस हो जाता है !
दूर तक फैला काला सागर
उस सागर का वही किनारा !
आज यहाँ मैं ,बैठ किनारे
जोड़ती हूँ खुदको सागर से !
मेरे दुःख के आंसू भी अब
खारे पानी सी लहरें बन कर
आंखों के कोने तक आते हैं
और पलकों से टकरा कर फिर
वापिस दिल तक आ जाते हैं !
मेरी पलकें आंखें बंद कर
मेरे दुःख मुझको लौटा देती हैं !
और --------------
मैं खुद दुःख के सागर में
उलझ उलझ कर रह जाती हूँ !

4 comments:

कृपा शंकर said...

क्या खूब लिखा है। दिल को छू गई कविता।

Shastri JC Philip said...

आज पहली बार आपके चिट्ठे पर आया एवं आपकी रचनाओं का अस्वादन किया. आप अच्छा लिखते हैं, लेकिन आपकी पोस्टिंग में बहुत समय का अंतराल है. सफल ब्लागिंग के लिये यह जरूरी है कि आप हफ्ते में कम से कम 3 पोस्टिंग करें. अधिकतर सफल चिट्ठाकार हफ्ते में 5 से अधिक पोस्ट करते हैं. किसी भी तरह की मदद चाहिये तो मुझ से संपर्क करे webmaster@sararhi.info -- शास्त्री जे सी फिलिप

मेरा स्वप्न: सन 2010 तक 50,000 हिन्दी चिट्ठाकार एवं,
2020 में 50 लाख, एवं 2025 मे एक करोड हिन्दी चिट्ठाकार!!

'A' or 'Gazal' jit said...

Ek baat kahu..........Tum sach me sach me nature aur uski khubsurati ko jis tarah se likhti ho kamal hai....I just can say ki....agar samandar ya chand ye nazm padh pata to khush ho jata ki koi to hai jo unki bhavnao ko samzata hai..

रंजू भाटिया said...

मेरे दुःख के आंसू भी अब
खारे पानी सी लहरें बन कर
आंखों के कोने तक आते हैं
और पलकों से टकरा कर फिर
वापिस दिल तक आ जाते हैं !
मेरी पलकें आंखें बंद कर
मेरे दुःख मुझको लौटा देती हैं !

main bahut hi parbhivit hun tumhare likhne se...god bless u ...kalam yun hi chalati rahe tumhari yahi dua hai ...

with lots of love

ranjana [ranju ]