Sunday, September 23, 2007

अमानत

मुझसे पहले मेरे उम्र भर के अरमान मर गए !
आंखों में आंसू और कुछ तेरे अहसान रह गए !
लपेट कर सारे अरमान फूलों की चादर में ,
दफन करने तेरे दर के पास कह गए !
मेरे पास न कुछ है ,बस एक दुआ के सिवा
मान करना अमानत का जो तुझे सौंप कर गए !
न आये कोई आंच ,न ज़माने की नज़र लगे
जिनके लिए हम ज़माने के सितम सह गए !
दर्द है ,दिल है ,दुआ है और दोस्ती भी है
फूलों की चादर में लपेट कर सबकी दास्ताँ कह गए !

1 comment:

अमिय प्रसून मल्लिक said...

achchhi,bahut khoob.
aapko padhna achchha lag raha hai.