Saturday, April 25, 2009

तुम

तुम्हारी मुस्कराहट मेरे दिल को चुरा ले जाती है !
मैं कुछ कहना भी चाहूँ तो मुझे वो रोक लेती है !
सर्दियों में ओस की बूँद से अगर खेलना चाहूँ ,
न जाने क्यूँ तुम्हारी तस्वीर उभर के आती है !
पास अपनी हरदम महसूस होता है एक साया ,
तुम्हारी हर इक अदा नज़र उसमें भी आती है !
मैं भूले से अगर आँखें कभी बंद कर लूँ ,
ख्यालों में तुम्हारा चेहरा ही मन को भाता है !
कभी भूले से मन मेरा भटक भी जाए तो क्या ,
लगता है कि वो तुमसे मिल कर मेरे पास आता है !
मैं भूल जाऊं तुम्हें और न करूँ कभी याद ,
मेरा दिल हर वक्त अब यही चाहता है !
मगर -
मेरे चाहने या न चाहने से क्या होता है ,
वही होता है जो मंजूरे खुदा होता है !