Wednesday, October 8, 2008

वह पीला गुलाब

फ़िर आसमान से सूरज उतरा
धरती पर लालिमा छाई !
पंछी उड़ चले नभ की ओर
मैंने भी घर की खिड़की खोली !
बाहर छोटी सी बगिया थी !
मंद,मंद हवा के झोंके
बुला रहे थे अपनी ओर !
अनायास मैं निकल पड़ी फ़िर
हरी घास थी जैसे मखमल
हर पौधे की हिलती डाली
लगता मुझको बुला रही थी !
जैसे मैं पहुँची एक पौधे के पास
देखा सुंदर खिला गुलाब !
सोने जैसा पीला रंग था !
देखा उसको,कुछ याद आया
एक पीला गुलाब वहां भी था
जो छोटा सा उपहार स्वरुप
किसी का आँगन महका रहा था !
न जाने अब कहाँ है वो ?
सजा रहा है उसका आँगन
या फ़िर सूख कर बिखर गया है ?
उसकी सुगंध में मेरी यादें
अब भी उसको आती होंगी ?
एक दिन उसने कहा था मुझसे
अब भी खुशबू आती है उसमें
अब भी वैसा ताजापन है !
रखूँगा इसको अपने दिल में
इसमें तेरा अपनापन है !
न जाने अब कहाँ है वो ?
सजा कर रखा है कोने में
या फ़िर तोड़ कर फैंक दिया है ?
तभी टहनी का काँटा चुभ कर
मुझे वर्तमान में ले आया !
और मैं लौट पड़ी फ़िर वापिस
भरी मन से घर की ओर !
दिल ने चाहा पंछी बनकर
उड़ कर पहुंचूं उसके पास !
और फ़िर उसका हाथ पकड़ कर
उससे पूछूं सिर्फ़ एक बात !
कहाँ है पीला खिला गुलाब ?
क्या अब भी है उसकी वैसी खुशबू ?
क्या अब भी उसमें वही महक है ?
क्या अब भी वैसा ताजापन है ?
क्या मेरी याद दिलाता है वो ?
फ़िर ढूंदेंगी उसको मेरी नज़रें
फ़िर पूछेंगी उससे यही सवाल !
यहाँ नहीं है,कहाँ गया वो ?
क्या तुमने वह फैंक दिया है ?
फैंक आए हो उसको पीछे
ऐसा मुझसे कभी न कहना !
वरना मैं समझूंगी तुमने
दिल से मुझको फैंक दिया है !
तभी नज़र पड़ेगी कोने पर
कागज़ में लिपटा खिला गुलाब
मानो मुझसे कहेगा हंस कर !
क्या सोचा था,तुम कर पाओगी
खुशबू को फूलों से दूर ?
दिल में उसके सदा रहोगी
चाहे हो जाओ जग से दूर !

Monday, September 8, 2008

कुछ सवालात

गुज़र चुकी जिंदगी की रातें
क्यूँ न सुबह का इंतज़ार करें !
बहुत हो चुकी तकरार की बातें
क्यूँ न प्यार का इज़हार करें !
मौत तो मिल जायेगी बिन मांगे
क्यूँ न जिंदगी से दो बात करें !
ढूंढ रहे हैं हम,कहाँ खो गए तुम
क्यूँ न हम तुमसे मुलाक़ात करें !
बहुत थक चुके,अब सोचते हैं हम
क्यूँ न तुमसे कुछ सवालात करें !
कहाँ से चले थे,कहाँ आ गए हम
क्यूँ न नए सफर की शुरुआत करें !

Monday, August 18, 2008

तुम्हारा ख्याल

वो महकता हुआ सा तुम्हारा ख्याल
आज मुझे क्यूँ आ गया !
जागते में तुम्हारा सुनहरा सा ख्वाब
दिल को क्यूँ बहला गया !
वो महकता हुआ सा तुम्हारा ख्याल !!
तुम्हे तो भुला ही चुकी थी मैं कब का
अचानक तुम्हारा चेहरा
याद मुझे क्यूँ आ गया !
वो महकता हुआ सा तुम्हारा ख्याल !!
हवा से भी पूछा तुम्हारा हाल
फिजां से भी पूछा ये ही सवाल
मगर हर तरफ़ से मायूस सा
जवाब मुझे क्यूँ आ गया !
वो महकता हुआ सा तुम्हारा ख्याल !!
इस उम्मीद पर गुजरी मेरी शाम
कभी तो नज़र आए ईद का चाँद
मगर चाँद को देखते ही मुझे
तुम्हारा ख्याल आ गया !
वो महकता हुआ सा तुम्हारा ख्याल
आज मुझे क्यूँ आ गया !

Thursday, August 7, 2008

प्यार भरा एक टुकडा


सन् १९९९ में दिसम्बर में १३३ साल बाद पूर्णमासी के दिन चाँद का आकार सामान्य से १४ % बड़ा था...

एक शताब्दी बाद आज आई ,
अनूठी चांदनी संग पूनम की रात !
उसकी बिखरी चांदनी मानो ,
चांदी की चादर बिछी हो धरती पर!
रात को मैं खिड़की से झांकी ,
देखा चाँद आज बहुत इतराया !
मैं बोली `ओ गगन के चाँद ',
बहुत इतराया एक युग के बाद !
माना आज तूने सुंदर रूप है पाया !
पर -एक चाँद इस धरती पर भी है ,
बरसों से उसने तुझसा रंग अपनाया !
मैंने आज छिपा रखा है घर में !
कहीं अगर वह आ जाए बाहर ,
उसकी चमक से तू फीका होगा !
सोचेंगे फ़िर ये दुनिया वाले ,
अब तक था ये इतना इतराया ,
फ़िर अचानक ये क्यूँ शरमाया !
इसीलिए रखने को तेरी लाज
अपना चाँद छुपा रखा है आज !
वह चाँद नहीं ,वह हीरा है !
वह हीरा नहीं ,वह कुंदन है !
कुंदन नहीं ,वह मेरे दिल का ,
प्यार भरा एक टुकडा है !

Friday, August 1, 2008

दगा

दोस्त बन कर तुमने
अपनी ही दोस्ती को दगा दिया ,
तुमसे तो दुश्मन भले
जो दुश्मनी तो निभाते हैं !
गंगा की तरह पाक
समझा था तुम्हे हमने !
करके मैला दोस्ती को ,तुमने
गंगाजल को नापाक किया !
कहते थे बड़े नाज़ से हम
हीरा है दोस्ती अपनी !
कमबख्त तब कहाँ जानते थे
हीरा भी कभी ज़हर बन जाता है !
इसे वक्त का ही तकाजा कहें
जो कभी हम पर लुटाते थे अपनी जान !
आज वो हर हाल में
हमारी जान के दुश्मन बने जाते हैं !

Wednesday, July 16, 2008

फ़ैसला


एक एक पल,एक युग सा लगने लगा
सूनी सी नज़र आने लगी सब गलियाँ
ये शहर भी हमको अजनबी सा लगने लगा
जब आईने में देखी हमने अपनी सूरत
अपना चेहरा भी मुरझाया सा लगने लगा
मन बहलाने चले बगीचे की ओर
हर फूल भी कुम्ल्हाया सा लगने लगा
न वो बहार ,न खुशबू
सारा आलम ही बेगाना सा लगने लगा
तारों की बारात संग जब चाँद निकला
ये चाँद भी हमको धुंधला सा लगने लगा
आँखें बंद कर दो पल मन बहलाने लगे
बीता हर पल आज हमें याद आने लगा
हमने कुछ दिल से कहा ,कुछ दिल ने हमसे कहा
यूँही बातों में फ़िर वक्त गुजरने लगा
हम भी चल पड़े ये फ़ैसला करके
हमने क्या जुर्म किया जो ज़माने से डरेंगे
बस एक तुमको चाहा है ,हम हजारों में कहेंगे !

Tuesday, July 8, 2008

इंतज़ार

है मुझे इंतज़ार उस दिन का

जिस दिन किसी की नफरत
बदल जाएगी चाहत में !
हो जाएंगे दूर सब गिले शिकवे
और बंध जाएंगे फिर सब रिश्ते
प्यार के धागे में !
जानती हूँ ऐसा सोचना
मेरे लिए एक हसीं ख्वाब सा है ,
और ख़्वाबों में जीना
एक आदत सी बन कर रह गई है !
बैठी हूँ आँखें मूँद कर
कि कहीं ये ख्वाब टूट न जाएँ
और मैं दोबारा न पहुँच जाऊं
हकीकत की दुनिया में !
इतना तो समझा है अपने तजुर्बे से
कि इंतज़ार अच्छा बहाना है
जिंदगी गुजारने का !
बस इन्हीं इंतज़ार की
पतवारों का सहारा ले कर
अपनी जीवन नय्या पार
लगाने की कोशिश में
चली जा रही हूँ मैं !

Tuesday, July 1, 2008

सौगात

ये ग़म किसी और ने दिए होते
तो शायद में भुला देती !
मगर मान कर ये सौगात तेरी
इन्हें दिल से लगाए बैठी हूँ !
वो दरीचे किसी और इमारत के होते
तो शायद --
नज़र झुका के चुपचाप चली जाती !
मगर आज उन्ही दरीचों को
नज़र भर देख के चली जाती हूँ !
रात ढलने को है और
नींद से बोझिल हैं पलकें मेरी !
सोचती हूँ ,क्यूँ तेरे ख्वाब आते हैं
और क्यूँ उन्हें पलकों में छुपा लेती हूँ !
प्यार भरे नगमे सुनती हूँ ,भुला देती हूँ !
हाँ ,तेरी बेवफाई के अफसाने
में अक्सर गुनगुनाती हूँ ,मुस्कुराती हूँ !

Wednesday, June 25, 2008

रैन बसेरा

घर के पिछवाडे आया एक पंछी
बना गया खिड़की में रैन बसेरा
रख दिया उसमे मैंने फिर चुग्गा
बडे प्यार से उसने खाया
अपनी मीठी वाणी से फिर
उसने मेरा मन बहलाया
सारा दिन वह उड़ता फिरता
सांझ पड़े घर आया करता
में भी उसको सांझ सवेरे
उसके घर में देखा करती
पर पंछी तो पंछी ही हैं
कब रहता है एक ठिकाना
एक दिन ऐसा गया यहाँ से
आज तक न वापिस आया
घर के पिछवाडे उसी जगह पर
अब भी बना है वही बसेरा
में भी उसको न फ़ेंक सकी
रोज़ यही सोचा करती हूँ
शायद आज वह लौट आएगा
यही इंतज़ारमें रोज़ करती हूँ !

Thursday, June 19, 2008

हैरान हूँ

हैरान हूँ , परेशान हूँ !
जिंदगी के दाव पेचों से ,
पूरी तरह अनजान हूँ !
क्या यही खेल हैं जिंदगी के ,
कि अपने अपनों को छलते रहें,
अपनेपन का दिखावा करते रहें !
और हम धिक्कारते रहें
उनको
गैर कह कर ,
जो गैर हो कर भी ,
जान हम पर लुटाते रहें !

Monday, June 2, 2008

उसकी राधा

मैंने कुम्हार से विनती करके
उससे कुछ चिकनी मिटटी मांगी !
ला कर थोडा प्यार का पानी
अरमानों का घोल बना कर
बडे प्यार से उसको रखा !
फिर ख़्वाबों का चाक बना कर
समय के चक्र सेउसे घुमा कर
एक प्यारी मूरत घड़ डाली !
ममता की धूप में उसे सुखा कर
चाहत के रंग दे डाले !
चेहरे को चन्दा कह डाला ,
कमल नाम नयनों का डाला !
होठों का रंग फिर सुर्ख किया ,
जुल्फों को काली घटा कह डाला !
उस मूरत को बडे प्यार से ,
अपने मन मंदिर में रखा !
अब रोज़ नियम से सांझ सवेरे ,
उस मूरत के दर्शन कर के ,
मैंने अपना स्वार्थ है साधा !
माना उसकोकृष्ण कन्हैया ,
और मैं बन गयी उसकी राधा !

Monday, May 26, 2008

अनजाने राही


न मैं तुमको कुछ कह सकी
न तुम ही मुझको समझ सके !
और बस यूं ही हम दोनों
जिंदगी का सफर तय करते रहे !
चलती रही यूं ही जिंदगी
यूं ही बस दिन कटते रहे !
और हम अपने ग़म के आंसू
पीते रहे और जीते रहे !
कोशिश कि कभी जो हमने
तुमने कब उसपे गौर किया !
बेदर्दी से मुंह को मोडा
और मेरा दिल तोड़ दिया !
दिल कहता कि एक दिन
जब तुम थक कर बैठोगे !
शायद मेरी याद आएगी
शायद तुम कुछ सोचोगे !
मेरे जैसा नाम कभी
अनजाने मैं सुन जाओगे !
शायद अपनी नादानी पर
धीरे से मुस्काओगे !

Monday, May 5, 2008

तर्ज़-ए-हयात


न कहीं ज़िक्र है , न कोई बात है
कितनी अजीब ये रात है !
हर दिन गुज़ारा तेरी याद में
तू ही मेरी तर्ज़ -ए -हयात है !
तुझे याद हो कि न याद हो
मेरे दिल में एक ही बात है !
तेरे नाम से दिल ये धड़कता है
तेरे दम से ये कायनात है !

Tuesday, February 12, 2008

खुशियाँ


खुशियाँ मेरे दरवाज़े तक आयी ,
मगर दहलीज़ लाँघ न पायी !
हाथ बडा कर उन्हे समेटना चाहा
चाहते हुए भी समेत न पायी
जीवन कि खुशियों को करने हासिल ,
कुछ दूर तक दौड़ना चाहा !
पर वक्त की रफ़्तार के संग ,
ज्यादा दूर तक दौड़ न पायी !
जीवन की शाम ढलने को है ,
मैंने खुशियों के चिराग जलाने चाहे !
दर्द की हवाओं से चिराग बुझने लगे ,
में गम के अँधेरे मिटा न पायी !