Wednesday, September 26, 2007

सफ़र

चांद निकलता है ,और रात शुरू होती है !
यहीं से सफ़र की बात शुरू होती है !
परंतु ऐसा भी होता है ,कभी-कभी
चांद न निकले तो अमावस की रात होती है !
तभी असल ज़िन्दगी से मुलाक़ात होती है !
लोग मिलते हैं ,तो कोई बात होती है !
और दोस्ती की शुरुआत यूं ही होती है !
परंतु ऐसा भी होता है कभी-कभी
दोस्त चले जाते हैं ,और याद मन में रहती है !
दोस्ती की ऐसी अमिट छाप मन में होती है !

2 comments:

Sanjeet Tripathi said...

जो मन पर छाप छोड़ जाए वही तो सच्चा दोस्त है न। नही तो हम सब हर हाथ मिलाने वाले को अपना दोस्त/फ़्रेंड कहकर ही एक दूसरे से परिचय करवाते रहते।

वैसे चांद पर आधारित आपकी यह दूसरी तीसरी रचना है, आपके अवचेतन मन पर चांद की छाप ही कुछ गहरी है लगता है।

आज दिखा हमें आपका ब्लॉग एग्रीगेटर्स पर !
सो पिछली टिप्पणी के लिए खेद, शायद गलती मेरी ही थी जो मुझे नज़र नही आई थी।

Udan Tashtari said...

बढ़िया है, लिखते रहें. शुभकामनायें.