Monday, September 10, 2007

उसकी राधा

मैंने कुम्हार से विनती करके
उससे कुछ चिकनी मिट्टी मांगी
ला कर थोडा प्यार का पानी
अरमानों का घोल बना कर
बडे प्यार से उसको रखा
फिर ख़्वाबों का चाक बना कर
समय के चक्र सा उसे घुमा कर
एक प्यारी मूरत घड़ डाली
ममता की धुप में उसे सुखा कर
चाहत के रंग दे डाले
चहरे को चन्दा कह डाला
कमल नाम नयनों का रखा
होंठों का रंग फिर सुर्ख किया
ज़ुल्फ़ों को काली घटा कह डाला
उस मूरत को बडे प्यार से
अपने मन मंदिर में रखा
अब रोज़ नियम से सांझ सवेरे
उस मूरत के दर्शन करके
मैंने अपना स्वार्थ है साधा
उसको माना मैंने कृष्ण kanhaiya
और मैं बन गयी उसकी राधा

1 comment:

रंजू भाटिया said...

wah wah !! beautiful ..kanaha mere bhi hero hain [:)]