Saturday, June 6, 2009

अपने शहर में

नसीब-ए-दर्द किसीसे ,हम कहना नहीं चाहते
अब अपने शहर में दिल-ए-सोज़ ,हम रहना नहीं चाहते !

हमने देखी है वफ़ा की आड़ में,बेवफाई उनकी
इस अफसाने को अब ,हम कहना नहीं चाहते
अब अपने शहर में दिल-ए-सोज़ ,हम रहना नहीं चाहते !

न समझें जज़्बात वो हमारे ,तो कोई बात नहीं
यूँ बेवजह हम भी ,उन्हें समझाना नहीं चाहते
अब अपने शहर में दिल-ए-सोज़ ,हम रहना नहीं चाहते !

भरते थे दम वो सरे महफ़िल ,जाँ निसारी का
ज़ख्म-ए-जिगर उनके दिए ,हम दिखाना नहीं चाहते
अब अपने शहर में दिल-ए-सोज़ ,हम रहना नहीं चाहते !