चांद को ये शिक़ायत है कि
हम उसका दीदार नहीं करते !
है कौनसी ऐसी बात जो हम
उसका रुखसार नहीं करते !
सुनकर ये शिक़ायत हमने कहा
ये अपनी फितरत है कि हम बेवजह
किसीको परेशां नहीं करते !
तुम दिन में तो कभी दिखते नहीं हो
हाँ ,रात को ही निकलते हो !
अबतो घर में ही रहते हैं हम
बाहर रात नहीं करते !
हाँ, दिख जाओ कभी पूनम को
मेरी खिडकी से कभी तुम
आ जाते हैं पहलू में तुम्हारे
ज़माने कि हम परवाह नहीं करते !
कर देते हैं बयां तुमसे
अफ़साने जहाँ भर के !
कहने पर जो आते हैं तो
बातें दो चार नहीं करते !
चोट खाए बैठे हैं
अपने दिल-ओ-जिगर में !
अबतो आलम ये है कि हम
दोस्तो पर भी ऐतबार नहीं करते !
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2 comments:
पसंद आई मुझे यह रचना!!
ये बताईये कि आपने अपने ब्लॉग को नारद, ब्लॉगवाणी या अन्य एग्रीगेटर्स पर रजिस्टर करवाया है या नही?
It is the best one really telling .....It is one of ur best creation....
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