क्यूं मन चंचल इतना हो जाये
कि कोई रोके रोक न पाए
क्यूं चहरे पर उदासी छाये
जैसे सावन की घटा घिर आये
क्यूं आंखों में आंसू आयें
जैसे रिमझिम फुहार पढ़ जाये
क्यूं दिल इतना जल जाये
जैसे जंगल में आग लग जाये
क्यूं तुम कृष्ण बन कर आये
कि मन दीवाना मीरा बन जाये
क्यूं कोई इतनी प्रीत बढाए
कि जीना भी मुश्किल हो जाये
क्यूं चंचल मन पंछी बन जाये
और मस्त हो कर उंचे उड़ जाये
|
3 comments:
बढ़िया है. लिखते रहें. स्वागत है हिन्दी चित्ठाजगत में.
"क्यूं कोई इतनी प्रीत बढाए
कि जीना भी मुश्किल हो जाये"
बहुत सशक्त अभिव्यक्ति है.
हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका हार्दिक स्वागत है -- शास्त्री जे सी फिलिप
मेरा स्वप्न: सन 2010 तक 50,000 हिन्दी चिट्ठाकार एवं,
2020 में 50 लाख, एवं 2025 मे एक करोड हिन्दी चिट्ठाकार!!
bahut sundar ilikha hai aapne shivaani
Post a Comment