Sunday, August 26, 2007

नासमझ

जहाँ कहीं भी अँधेरे देखे मैंने
वहाँ चिराग जलाती रही थी मैं !
बस एक मेरा ही घर बचा था
जहाँ दीप नही जला !
न देख पाई बहते हुए कभी
किसी की आंखों से मैं आंसू
सबके दुःख मिटाती रही थी मैं !
थी सबके दुखों की खबर मुझे
सबकी ख़ुशी में उम्र भर
शामिल रही थी मैं !
जब देखा झाँक कर
अपने दिल में कभी
बिचारा दिल मुझे
रोता हुआ मिला !
समझा था अच्छी तरह
सबके दिल को मैंने !
मगर हैरान सी रह गयी
जब कोई गुज़र गया
कह कर नासमझ मुझको

1 comment:

'A' or 'Gazal' jit said...

Heyyyyyyyyyyyy Shinu kya likha hai.....kamal hai sach me bahot hi sahi likhaaaaa yaaaaaaarrrrrrr....Brilliant....sach me class hai...