Thursday, August 23, 2007

नियति

दिल का दर्द जुबां तक आ जाय तो अच्छा है
आंखों के आंसू दरिया बन बाह जाएँ तो अच्छा है
हर सांस के साथ आहों का निकलना
पलकों पर रुके आंसुओं का
बूँद बूँद बन बह जाना
दिल कि हर धड़कन पर
दर्द महसूस करना
अब नियति बन कर रह गया है
एक नारी जो डरती है
अपना दर्द जुबां पर लाने से
एक नारी जिसके पलकों के बाँध
आंसुओं के समुद्र को रोक रहे हैं
एक नारी जो चटपटा रही है
जैसे कोई मछली रख दीं हो
रेत के समुद्र पर पानी से निकाल कर
है कोई ऐसा जो बाँट सके ये दर्द
है कोई ऐसा जो हह्सूस कर सके
उसके अंतेर्मन पर लगी चोट को
कौन है जो आहत कर गया उसको
कौन है जो अपने मूक बाणों से
छलनी कर गया कलेजा उसका
कौन है उसके साथ यह खिलवाड़ करने वाला
वह कोई और नहीं
वह है हमारे समाज का
एक सभ्य पुरुष ......

2 comments:

रंजू भाटिया said...

एक नारी जिसके पलकों के बाँध
आंसुओं के समुद्र को रोक रहे हैं
एक नारी जो चटपटा रही है
जैसे कोई मछली रख दीं हो
रेत के समुद्र पर पानी से निकाल कर
है कोई ऐसा जो बाँट सके ये दर्द
है कोई ऐसा जो हह्सूस कर सके
उसके अंतेर्मन पर लगी चोट को
कौन है जो आहत कर गया उसको
कौन है जो अपने मूक बाणों से
छलनी कर गया कलेजा उसका


बहुत कुछ कह गई यह पंक्तियां बहुत ही सुंदर रचना लिखती रहें शुक्रिया

'A' or 'Gazal' jit said...

Absolutely amazing work............As I know Shivani since long she is really good poet and person as well.But here u wrote absolute truth.....Great keep it up.