ये कैसे बन्धन ने बाँधा है मुझको
जिसका कोई नाम नही !
सिर्फ एक कोमल सा है अहसास
जो एक भीनी,सुन्दर,सफ़ेद
रेशम की चादर सा
लिपट ता जा रहा है मुझसे !
ये कैसा बन्धन है
जो सुनहरे ,सतरंगे सपने सा
तैर रहा है मेरी आंखों में
और मैं उन सपनो से बाँध कर
क्यों भाग रही हूँ उनके पीछे !
ये कैसा बन्धन है
जो मनमोहक ,मदमस्त सुगंध लिए
बना रहा है मुझको मतवाला !
ये कैसा बन्धन है
जिसका न कोई छोर
न कोई ठिकाना !
पर ऐसा बुन गया है ताना बाना
कि बाँध कर रह गयी हूँ इस बन्धन में !
चाहती हूँ कि दे ही डालूँ
इस बन्धन को एक अच्छा सा नाम !
हाँ, शायद इस बन्धन का
सिर्फ और सिर्फ चाहत है नाम !
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