कैसे कहूँ मैं तुमसे
अपने दिल का ये फ़साना
एक चाहत का दायरा था
वो भी सिमट रहा है
न कोई वजूद मेरा
न कोई मेरा ठिकाना
लो अब चला मैं यारो
मेरा सांस घुट रहा है
Posted by
शिवानी
at
Monday, April 23, 2012
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