Friday, April 27, 2012

हसरत

मैं इन पलकों को झुकाऊं कैसे
मैंने चाँद को धरती पर उतरते देखा है 
हाँ - वो रात का पहर था ,और थी तन्हाई 
सारी धरती लगती थी चांदनी में नहाई 
मैंने चांदनी में हीरे को लिपटे देखा है 
मेरी हसरत है कि चाँद को हाथों में पकड़ लूँ 
दिल के कोने में छुपा लूँ या पलकों में बसा लूँ 
मगर चाँद कब हो कर रहा है किसीका 
मैंने उसे मुंह फेर कर जाते देखा है ....  

2 comments:

Ajit Pandey said...

Beautiful!!! मगर चाँद कब हो कर रहा है किसीका
मैंने उसे मुंह फेर कर जाते देखा है ....

शिवानी said...

shukriya dost...