मैं इन पलकों को झुकाऊं कैसे
मैंने चाँद को धरती पर उतरते देखा है
हाँ - वो रात का पहर था ,और थी तन्हाई
सारी धरती लगती थी चांदनी में नहाई
मैंने चांदनी में हीरे को लिपटे देखा है
मेरी हसरत है कि चाँद को हाथों में पकड़ लूँ
दिल के कोने में छुपा लूँ या पलकों में बसा लूँ
मगर चाँद कब हो कर रहा है किसीका
मैंने उसे मुंह फेर कर जाते देखा है ....
2 comments:
Beautiful!!! मगर चाँद कब हो कर रहा है किसीका
मैंने उसे मुंह फेर कर जाते देखा है ....
shukriya dost...
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