Wednesday, September 2, 2009

सुलझी पहेली

शायद मैंने तुम्हें कुछ समझा है !
बहुत कुछ नज़र आने पर ,
तुम्हारा नज़रंदाज़ कर जाना !
बहुत कुछ कहना चाहने पर ,
तुम्हारा इज़हार न कर पाना !
बहुत सी प्रेम भावनाओं का ,
तुम्हारे मन में दब जाना !
किसीकी इच्छाओं को जान कर ,
तुम्हारा अनजान बन जाना !
मगर -
खुली किताब सी आँखें तुम्हारी ,
बहुत कुछ पढ़ा देती हैं अब मुझको !
अनायास ही बंद ,चुप होंठ तुम्हारे ,
बहुत कुछ बता देते हैं अब मुझको !
प्रेम भावनाएं लिए चेहरा तुम्हारा ,
बहुत कुछ कह देता है अब मुझको !
मनमोहक,मनमुग्ध,मुस्कान तुम्हारी ,
बहुत कुछ दर्शाती हैं अब मुझको !
हाँ,तुम अनबूझ पहेली थे अब तक ,
वो पहेली सुलझी नज़र आती है अब मुझको !

6 comments:

विनोद कुमार पांडेय said...

गीत सुंदर भाव से भरी है..
पहेली का सुलझना और प्यार की सुंदर अभिव्यक्ति..सब बहुत बढ़िया दर्शाया
बधाई!!

फ़िरदौस ख़ान said...

बहुत सुन्दर रचना है...

ilesh said...

man me uthati tarango ko lafjo me dhaal na itna aasan nahi he aur aapne ek lay ke sath lafjo me pirya he apne bhav ko badhai

निर्मला कपिला said...

हाँ,तुम अनबूझ पहेली थे अब तक ,
वो पहेली सुलझी नज़र आती है अब मुझको !
वाह पहेली सुलझ जाये तो और क्या चाहिये कई बार यही उलझ जाती है । बहुत सुन्दर रचना है बधाई

Mithilesh dubey said...

लाजवाब भावपूर्ण रचना। बधाई

Udan Tashtari said...

हाँ,तुम अनबूझ पहेली थे अब तक ,
वो पहेली सुलझी नज़र आती है अब मुझको !

-बहुत गहरी बात..सुन्दर भाव!!