Saturday, August 29, 2009

एक शाम के नाम

सूरज का रथ लालिमा ले कर ,
निकल पड़ा था क्षितिज की ओर !
विशाल समुद्र के सपाट हृदय पर ,
उठ रहा था लहरों का शोर !
कलरव करते पक्षी भी अब,
ढूंढ रहे थे रैन बसेरा !
वहीँ दूर एक खड़ी थी किश्ती ,
जाने को अब घर की ओर !
सफ़ेद चमकती रेत पर बैठी ,
सोच रही थी मैं एक बात !
क्यूँ न आज कुछ पंक्तियाँ लिख कर ,
कर दोन उनको इस शाम के नाम !
मेरे जीवन की जब भी आए ,
ऐसी शाम सुहानी हो !
जो बीती ,जैसी भी बीती ,
आगे सुख भरी कहानी हो !
जब भी आए डोली मेरी ,
इस दुनिया से दूर जाने को !
विदा करना तुम मुझे सजा कर ,
जैसे दुल्हन नई नवेली हो !

4 comments:

M VERMA said...

जो बीती ,जैसी भी बीती ,
आगे सुख भरी कहानी हो !
आशावादी आकान्क्षा अच्छी लगी रचना.

Unknown said...

bahut sundar rachna hai shivaniji.... congrates.. aise he likhti raheyega....

Unknown said...
This comment has been removed by the author.
Udan Tashtari said...

अद्भुत रचना..सुन्दर शब्द संचयन..अच्छा लगा पढ़कर.