वो एक हसीं शाम थी
शायद वो उनके नाम थी
हर नजारे में उनका चेहरा था
वो तो गज़ब की शाम थी
उस राह से हम गुज़रे ही थे
अचानक नज़र वो आ गए
उनसे निगाहें क्या मिली
उनके चेहरे का रंग बदल गया
चेहरा सफ़ेद से सुर्ख हुआ
सुर्ख रंग शर्म में बदल गया
करीब से वो गुजरे ही थे
धीरे से हम कुछ कह गए
करके नज़रंदाज़ बातों को
सर को झुका वो चल दिए
एक बार फिर उसी राह पर
अचानक नज़र वो आ गए
जैसे ही हमने कुछ कहा
धीमे से वो कुछ कह गए
उनके लबों पे जो लफ्ज़ थे
वो लफ्ज़ काबिलेगौर थे
माना मंजिल हमारी एक थी
पर रास्ते हमारे और थे !
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4 comments:
धीमे से वो कुछ कह गए
उनके लबों पे जो लफ्ज़ थे
वो लफ्ज़ काबिलेगौर थे
माना मंजिल हमारी एक थी
पर रास्ते हमारे और थे !
pyar bhi judai bhi,khusurat nazm
वाह ... मिलने से बिछडने तक ... बहुत सुंदर रचना।
माना मंजिल हमारी एक थी
पर रास्ते हमारे और थे !
sundar..
bahut kuch kahti huyee.
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