Tuesday, July 1, 2008

सौगात

ये ग़म किसी और ने दिए होते
तो शायद में भुला देती !
मगर मान कर ये सौगात तेरी
इन्हें दिल से लगाए बैठी हूँ !
वो दरीचे किसी और इमारत के होते
तो शायद --
नज़र झुका के चुपचाप चली जाती !
मगर आज उन्ही दरीचों को
नज़र भर देख के चली जाती हूँ !
रात ढलने को है और
नींद से बोझिल हैं पलकें मेरी !
सोचती हूँ ,क्यूँ तेरे ख्वाब आते हैं
और क्यूँ उन्हें पलकों में छुपा लेती हूँ !
प्यार भरे नगमे सुनती हूँ ,भुला देती हूँ !
हाँ ,तेरी बेवफाई के अफसाने
में अक्सर गुनगुनाती हूँ ,मुस्कुराती हूँ !

10 comments:

ghughutibasuti said...

बहुत सुन्दर !
घुघूती बासूती

सतीश पंचम said...

वो दरीचे किसी और इमारत के होते
तो शायद --
नज़र झुका के चुपचाप चली जाती !
मगर आज उन्ही दरीचों को
नज़र भर देख के चली जाती हूँ !

- बहूत खूब, अच्छा लिखा

रंजू भाटिया said...

रात ढलने को है और
नींद से बोझिल हैं पलकें मेरी !
सोचती हूँ ,क्यूँ तेरे ख्वाब आते हैं
और क्यूँ उन्हें पलकों में छुपा लेती हूँ !
प्यार भरे नगमे सुनती हूँ ,भुला देती हू


बहुत सुंदर शिवानी ..आपकी यह रचना बहुत अच्छी लगी

शोभा said...

बहुत सुन्दर भाव भरी कविता। बधाई स्वीकारें।

Anonymous said...

vha bhut sundar. badhai ho. jari rhe.

Udan Tashtari said...

बेहतरीन!! अति सुन्दर.

Ajit Pandey said...

Waw!!! absolutely touching.....

Ashutosh Pandey said...

bahut khub, bahut accha likha hai...

Ashutosh Pandey said...

asha karte hai ki aap isi tarah aage postkarti rahe...

Anonymous said...

beautiful wordings beautiful poem.very emotional.great.....juhi