Wednesday, June 25, 2008

रैन बसेरा

घर के पिछवाडे आया एक पंछी
बना गया खिड़की में रैन बसेरा
रख दिया उसमे मैंने फिर चुग्गा
बडे प्यार से उसने खाया
अपनी मीठी वाणी से फिर
उसने मेरा मन बहलाया
सारा दिन वह उड़ता फिरता
सांझ पड़े घर आया करता
में भी उसको सांझ सवेरे
उसके घर में देखा करती
पर पंछी तो पंछी ही हैं
कब रहता है एक ठिकाना
एक दिन ऐसा गया यहाँ से
आज तक न वापिस आया
घर के पिछवाडे उसी जगह पर
अब भी बना है वही बसेरा
में भी उसको न फ़ेंक सकी
रोज़ यही सोचा करती हूँ
शायद आज वह लौट आएगा
यही इंतज़ारमें रोज़ करती हूँ !

4 comments:

रंजू भाटिया said...

पर पंछी तो पंछी ही हैं
कब रहता है एक ठिकाना
एक दिन ऐसा गया यहाँ से
आज तक न वापिस आया

बहुत खूब शिवानी ..

Anonymous said...

sivaniji bhut sundar rachana. badhai ho.

अमिताभ मीत said...

Bahut badhiya.

Udan Tashtari said...

बहुत बढ़िया, बधाई. लिखती रहें.