Tuesday, July 8, 2008

इंतज़ार

है मुझे इंतज़ार उस दिन का

जिस दिन किसी की नफरत
बदल जाएगी चाहत में !
हो जाएंगे दूर सब गिले शिकवे
और बंध जाएंगे फिर सब रिश्ते
प्यार के धागे में !
जानती हूँ ऐसा सोचना
मेरे लिए एक हसीं ख्वाब सा है ,
और ख़्वाबों में जीना
एक आदत सी बन कर रह गई है !
बैठी हूँ आँखें मूँद कर
कि कहीं ये ख्वाब टूट न जाएँ
और मैं दोबारा न पहुँच जाऊं
हकीकत की दुनिया में !
इतना तो समझा है अपने तजुर्बे से
कि इंतज़ार अच्छा बहाना है
जिंदगी गुजारने का !
बस इन्हीं इंतज़ार की
पतवारों का सहारा ले कर
अपनी जीवन नय्या पार
लगाने की कोशिश में
चली जा रही हूँ मैं !

7 comments:

अबरार अहमद said...

बहुत सुंदर। भावपूर्ण रचना। बधाई।

रंजू भाटिया said...

इसी उम्मीद पर इंतज़ार पर दुनिया कायम है शिवानी जी ..अच्छी लगी आपकी यह कविता

अमिताभ मीत said...

इतना तो समझा है अपने तजुर्बे से
कि इंतज़ार अच्छा बहाना है
जिंदगी गुजारने का !
बहुत सही है.

Anonymous said...

बस इन्हीं इंतज़ार की
पतवारों का सहारा ले कर
अपनी जीवन नय्या पार
लगाने की कोशिश में
चली जा रही हूँ मैं !
bahut sahi kaha,intazaar hi ek din haqiqat ban jata hai,bahut sundar bhav

Anonymous said...

bhut sundar. badhai ho.

Udan Tashtari said...

भावपूर्ण रचना के लिए बहुत बधाई.

Anonymous said...

bahut sunder bhav.congrats....juhi