Monday, June 2, 2008

उसकी राधा

मैंने कुम्हार से विनती करके
उससे कुछ चिकनी मिटटी मांगी !
ला कर थोडा प्यार का पानी
अरमानों का घोल बना कर
बडे प्यार से उसको रखा !
फिर ख़्वाबों का चाक बना कर
समय के चक्र सेउसे घुमा कर
एक प्यारी मूरत घड़ डाली !
ममता की धूप में उसे सुखा कर
चाहत के रंग दे डाले !
चेहरे को चन्दा कह डाला ,
कमल नाम नयनों का डाला !
होठों का रंग फिर सुर्ख किया ,
जुल्फों को काली घटा कह डाला !
उस मूरत को बडे प्यार से ,
अपने मन मंदिर में रखा !
अब रोज़ नियम से सांझ सवेरे ,
उस मूरत के दर्शन कर के ,
मैंने अपना स्वार्थ है साधा !
माना उसकोकृष्ण कन्हैया ,
और मैं बन गयी उसकी राधा !

1 comment:

Udan Tashtari said...

माना उसकोकृष्ण कन्हैया ,
और मैं बन गयी उसकी राधा !

-बहुत बढ़िया.