Monday, May 26, 2008

अनजाने राही


न मैं तुमको कुछ कह सकी
न तुम ही मुझको समझ सके !
और बस यूं ही हम दोनों
जिंदगी का सफर तय करते रहे !
चलती रही यूं ही जिंदगी
यूं ही बस दिन कटते रहे !
और हम अपने ग़म के आंसू
पीते रहे और जीते रहे !
कोशिश कि कभी जो हमने
तुमने कब उसपे गौर किया !
बेदर्दी से मुंह को मोडा
और मेरा दिल तोड़ दिया !
दिल कहता कि एक दिन
जब तुम थक कर बैठोगे !
शायद मेरी याद आएगी
शायद तुम कुछ सोचोगे !
मेरे जैसा नाम कभी
अनजाने मैं सुन जाओगे !
शायद अपनी नादानी पर
धीरे से मुस्काओगे !

2 comments:

रंजू भाटिया said...

सुंदर लिखा है .अच्छा लगा इसको पढ़ना

Ajit Pandey said...

Ye khayal aate kaise hai tumhare jahan me yaar.... Bahut hi khubsurat sach me!!!!!!