Wednesday, June 20, 2012

ज़ख्म

गैरों से छिपा कर,अपनों से बचा कर 
जो ज़ख्म दिल में छुपा कर रखे थे 
मुद्दत से न छेड़ा था जिनको मैंने 
आज नासूर वो बना कर रखे थे 
रिस रहा था जो दर्द,क़तरा क़तरा बन कर 
अपनी आँखों में वो,अश्क बचा कर रखे थे 
शायद काम कर जाए,दुआ ही तेरी 
वरना ज़ख्मे-जिगर तो लाइलाज बना कर रखे थे !

2 comments:

Ajit Pandey said...

Awesome!!! Tumhare Andaj-e-bayan hamesha chhu jata hai Shivani!!

शिवानी said...

thanx ajit....mujhko vishwaas tha ki tum apni upasthiti zaroor darz karoge...