नसीब-ए-दर्द किसीसे ,हम कहना नहीं चाहते
अब अपने शहर में दिल-ए-सोज़ ,हम रहना नहीं चाहते !
हमने देखी है वफ़ा की आड़ में,बेवफाई उनकी
इस अफसाने को अब ,हम कहना नहीं चाहते
अब अपने शहर में दिल-ए-सोज़ ,हम रहना नहीं चाहते !
न समझें जज़्बात वो हमारे ,तो कोई बात नहीं
यूँ बेवजह हम भी ,उन्हें समझाना नहीं चाहते
अब अपने शहर में दिल-ए-सोज़ ,हम रहना नहीं चाहते !
भरते थे दम वो सरे महफ़िल ,जाँ निसारी का
ज़ख्म-ए-जिगर उनके दिए ,हम दिखाना नहीं चाहते
अब अपने शहर में दिल-ए-सोज़ ,हम रहना नहीं चाहते !
Saturday, June 6, 2009
अपने शहर में
Posted by
शिवानी
at
Saturday, June 06, 2009
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4 comments:
shivani ji kahan tak bhaag sakta hai aadmi bahut sundar abhivyakti hai aabhaar
भरते थे दम वो सरे महफ़िल ,जाँ निसारी का
ज़ख्म-ए-जिगर उनके दिए ,हम दिखाना नहीं चाहते
बहुत खूब शिवानी जी...बेहतरीन...बधाई...
आप के ब्लॉग पर संगीत सुनने का अलग ही आनंद है..."चले जाना..." वाह...
नीरज
bhavpoorna !
layabaddh !
saras ______________badhai ho__________
khoobsurat lafz haun...
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