घर के पिछवाडे आया एक पंछी
बना गया खिड़की में रैन बसेरा
रख दिया उसमे मैंने फिर चुग्गा
बडे प्यार से उसने खाया
अपनी मीठी वाणी से फिर
उसने मेरा मन बहलाया
सारा दिन वह उड़ता फिरता
सांझ पड़े घर आया करता
में भी उसको सांझ सवेरे
उसके घर में देखा करती
पर पंछी तो पंछी ही हैं
कब रहता है एक ठिकाना
एक दिन ऐसा गया यहाँ से
आज तक न वापिस आया
घर के पिछवाडे उसी जगह पर
अब भी बना है वही बसेरा
में भी उसको न फ़ेंक सकी
रोज़ यही सोचा करती हूँ
शायद आज वह लौट आएगा
यही इंतज़ारमें रोज़ करती हूँ !
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