वो महकता हुआ सा तुम्हारा ख्याल
आज मुझे क्यूँ आ गया !
जागते में तुम्हारा सुनहरा सा ख्वाब
दिल को क्यूँ बहला गया !
वो महकता हुआ सा तुम्हारा ख्याल !!
तुम्हे तो भुला ही चुकी थी मैं कब का
अचानक तुम्हारा चेहरा
याद मुझे क्यूँ आ गया !
वो महकता हुआ सा तुम्हारा ख्याल !!
हवा से भी पूछा तुम्हारा हाल
फिजां से भी पूछा ये ही सवाल
मगर हर तरफ़ से मायूस सा
जवाब मुझे क्यूँ आ गया !
वो महकता हुआ सा तुम्हारा ख्याल !!
इस उम्मीद पर गुजरी मेरी शाम
कभी तो नज़र आए ईद का चाँद
मगर चाँद को देखते ही मुझे
तुम्हारा ख्याल आ गया !
वो महकता हुआ सा तुम्हारा ख्याल
आज मुझे क्यूँ आ गया !
Monday, August 18, 2008
तुम्हारा ख्याल
Posted by
शिवानी
at
Monday, August 18, 2008
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7 comments:
कभी तो नज़र आए ईद का चाँद
मगर चाँद को देखते ही मुझे
तुम्हारा ख्याल आ गया !
वो महकता हुआ सा तुम्हारा ख्याल
बहुत सुन्दर लिखा है। वाह
bahut sunder likha aapne,badhai
वो महकता हुआ सा तुम्हारा ख्याल !!
इस उम्मीद पर गुजरी मेरी शाम
कभी तो नज़र आए ईद का चाँद
मगर चाँद को देखते ही मुझे
तुम्हारा ख्याल आ गया !
बहुत सुंदर ख्याल ..
बिल्कुल महकती और महकाती हुई रचना.
पढ़ कर सुकून मिला मन को.
आभार.
bahut hi sunder rachna....badhai dil ki baat dil ke rashte sunane ke liye.
बहुत सुंदर !!
ati sundar aur man moh karne wali , kavitaein....mai sirf angreji ye kehna chahoonga......beautiful thoughts keep it up!
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