Tuesday, October 2, 2007

गुजारिश

ऐसा नहीं कि आज मुझे चांद चाहिऐ
मुझको तुम्हारे प्यार में विश्वास चाहिऐ !
न की कभी भी ख्वाहिश मैंने सितारों की
ख्वाबों में बस तुम्हारा मुझे दीदार चाहिऐ !
मिल न सको मुझे तुम हकीकत में ग़र कभी
जन्नत में बस तुम्हारा मुझे साथ चाहिऐ !
मायूस हो चुके हैं अब जिन्दगी से हम
अब चाहिऐ तो मौत का पैगाम चाहिऐ !
जाओगे दफन करने जब मेरे जिस्म को
बस आखिरी दो पल का मुझे साथ चाहिऐ !
ऐसा नही कि आज मुझे चांद चाहिऐ
मुझको तुम्हारे प्यार में विश्वास चाहिऐ !

9 comments:

Udan Tashtari said...

बढ़िया रचना है, बधाई.

एक पंक्ति said...

ख़याल तो बहुत उम्दा है लेकिन ग़ज़ल व्याकरण की कसावट गुम है...किसी से मशवरा कीजिये न शिवानी बहन.देखिये कैसे परवान चढ़ता है आपका लेख्नन.ग़ज़ल दिखती आसान है...लेकिन
एक आग का दरिया और डूब के जाना है !

'A' or 'Gazal' jit said...

Bahot khub ......bahot dard hai aur ahsas bhi....Bahot khub

राजीव रंजन प्रसाद said...

शिवानी जी,


ऐसा नहीं कि आज मुझे चांद चाहिऐ
मुझको तुम्हारे प्यार में विश्वास चाहिऐ !

बहुत अच्छी गज़ल है। आभार कि आपने लिंक दिया। अपनी अच्छी रचनाओं से निरंतर अवगत करायें।


*** राजीव रंजन प्रसाद

सुबोध said...

भरोसा बड़ा अहम् होता है रिश्तों के बीच..अच्छा लगा पढ़ कर

Unknown said...

wonder full

manu said...

maine aap ki gazal bahut bar badi...dil me dard hai ...par mayus n hona ... sabi ko chand nahi milta ... ek khwahish hai hamesha mushkrate rahena.

रंजू भाटिया said...

बहुत सुंदर लिखा है आपने ...भाव बहुत अच्छे हैं इस के

बधाई आपको इस सुंदर रचना के लिए !!

विपुल said...

अच्छी रचना थी शिवानी जी... बस शिल्प में थोड़ी कमी खली पर वो भी जल्दी डोर हो जाएगी .. ऐसा मेरा विश्वास है ..