पत्थर की पूजा करते तो
अक्सर सबको देखा था !
पर पत्थर से करते प्यार
सिर्फ उसको ही देखा है !
कितनी अनजान है वो
नहीं जानती जो शायद
कि पत्थर दिल कब पिघले हैं !
हो जायेगी उम्र पूरी
करते हुए प्यार का इजहार
करते करते दिल की बात !
न पायेगी जब उत्तर उसका
टकरा कर थक-हार कर
बैठ जायेगी एकदम टूट कर !
नादाँ है नहीं जानती
पत्थर से मोहब्बत करना
आसमान पाने की चाह करना है !
और फिर बरसों बाद
उम्र का सफ़र तय करते करते
सामना हुआ जब एक दिन उस से
पूछा उसके दिल का हाल !
ठंडी सी एक आह भरकर
कह डाली उसने यह बात
उम्र भर का यही तकाजा
उम्र भर का यही एक सार
पत्थर की तुम पूजा कर लो
मत करना पत्थर से प्यार !
पत्थर तो अखिर पत्थर हैं
पत्थर दिल कब पिघले हैं !
Sunday, September 30, 2007
पत्थर तो आख़िर पत्थर हैं
Posted by शिवानी at Sunday, September 30, 2007
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6 comments:
shivanijee,
aap kaha hain ab tak chipi huee..hindyugm par aayein is baar kaavya-pallavan mein hissa jarur lein...aap achcha likhti hain.
nikhil
अच्छी रचना...
पत्थर दिल कब पिघले हैं !
फिर भी आशा पर आसमान टिका है. प्रयास तो जारी रखना पड़ता है.
What a mind blowing topic u wrote on..........Simply amazing
बहुत सुंदर लिखा है आपने शिवानी !!बधाई आपको इतना सुंदर लिखने के लिए
kabhi khushi kabhi gam
tis is d life
pathar to piglega, man me vishwash ho and irada pakka ho to pathar se bhi pani barsega aur zaroor barsega,
kavita bhahut achhi hai, tarif ke liye koi shabd nai.
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