बरसों बाद जब नदी किनारे
गुजरी तो देखे रेत के घर मैंने !
वो कमरे,वो मंदिर,वो आंगन
वो तालाब,वो किश्ती,वो दरवाज़े
वो दीवारें,वो पेड़,वो फूल !
सभी कुछ तो था वहाँ
जो --
अहसास करा रह था खुशहाली का !
ये घर जो बनाए थे नन्हे हाथों ने
वही नन्हे कारीगर पास बैठे
निहार रहे थे अपनी कला को !
अचानक एक तेज़ लहर बड़ी उस ओर
और ले गयी समेट सब अपने साथ !
सब मिट चुका था !
घर का नहीं था कोई नाम -ओ -निशाँ !
उन्हें देखती हुए मैं
सोच रही थी कि ,
रेत की बुनियाद पर
कब टिके हैं किसी के घर !
गुजरी तो देखे रेत के घर मैंने !
वो कमरे,वो मंदिर,वो आंगन
वो तालाब,वो किश्ती,वो दरवाज़े
वो दीवारें,वो पेड़,वो फूल !
सभी कुछ तो था वहाँ
जो --
अहसास करा रह था खुशहाली का !
ये घर जो बनाए थे नन्हे हाथों ने
वही नन्हे कारीगर पास बैठे
निहार रहे थे अपनी कला को !
अचानक एक तेज़ लहर बड़ी उस ओर
और ले गयी समेट सब अपने साथ !
सब मिट चुका था !
घर का नहीं था कोई नाम -ओ -निशाँ !
उन्हें देखती हुए मैं
सोच रही थी कि ,
रेत की बुनियाद पर
कब टिके हैं किसी के घर !
2 comments:
उन्हें देखती हुए मैं
सोच रही थी कि ,
रेत की बुनियाद पर
कब टिके हैं किसी के घर !
bahut khoob bahut hi achaa likha hai aapne
Awesome........Simply great....Ye soch sach me sochne par majoor kar deti hai
रेत की बुनियाद पर
कब टिके हैं किसी के घर !
Great
Post a Comment