हाँ ,चांद ज़रा ये बतलाना
वो चांद वहाँ पर कैसा है ?
मुद्दत हो गयी देखे उसे
क्या हाल वहाँ पर उसका है ?
क्या अब भी उसकी मीठी बातें
मीठा रस कानों में घोलती हैं ?
क्या अब भी उसकी खामोश आंखें
चुप रह कर भी सब बोलती हैं ?
क्या अब भी मेरी आशाओं का चेहरा
उसके चहरे से मिलता है ?
क्या अब भी उसको बेबात पे ग़ुस्सा
यूं ही अक्सर आ जाता है ?
क्या भूलें भटके कभी नाम मेरा
उसके होंटों पर भी आता है ?
इतने दिन उसको देखे बिना
जो हाल यहाँ पर मेरा है !
सच सच तू मुझको बतलाना
क्या हाल वहाँ पर उसका है ?
तुम रोज़ यहाँ जब आते हो
उसके घर भी हो कर आना
मेरी सब बातों का उत्तर
अपने चहरे पर लिख लाना !
मैं जीं भर के तुमको देखूँगी
समझूंगी उसको देख लिया
फिर पढ़ कर तेरे चहरे को
उसके दिल का हाल मैं पढ़ लूंगी !
कल शाम को तू जल्दी आना
बेचैन मेरे दिलको बतलाना
वो चांद वहाँ पर कैसा है ?
मुद्दत हो गयी देखे उसे
क्या हाल वहाँ पर उसका है ?
वो चांद वहाँ पर कैसा है ?
मुद्दत हो गयी देखे उसे
क्या हाल वहाँ पर उसका है ?
क्या अब भी उसकी मीठी बातें
मीठा रस कानों में घोलती हैं ?
क्या अब भी उसकी खामोश आंखें
चुप रह कर भी सब बोलती हैं ?
क्या अब भी मेरी आशाओं का चेहरा
उसके चहरे से मिलता है ?
क्या अब भी उसको बेबात पे ग़ुस्सा
यूं ही अक्सर आ जाता है ?
क्या भूलें भटके कभी नाम मेरा
उसके होंटों पर भी आता है ?
इतने दिन उसको देखे बिना
जो हाल यहाँ पर मेरा है !
सच सच तू मुझको बतलाना
क्या हाल वहाँ पर उसका है ?
तुम रोज़ यहाँ जब आते हो
उसके घर भी हो कर आना
मेरी सब बातों का उत्तर
अपने चहरे पर लिख लाना !
मैं जीं भर के तुमको देखूँगी
समझूंगी उसको देख लिया
फिर पढ़ कर तेरे चहरे को
उसके दिल का हाल मैं पढ़ लूंगी !
कल शाम को तू जल्दी आना
बेचैन मेरे दिलको बतलाना
वो चांद वहाँ पर कैसा है ?
मुद्दत हो गयी देखे उसे
क्या हाल वहाँ पर उसका है ?
11 comments:
अच्छी रचना अच्छे विचार .....
आपकी कल्पनाशीलता बहुत अच्छी है … अच्छी उड़ान भरती हैं आप…
कविता में जो एक सत्य पुकार है वह बहुत ही स्पष्ट है……
बहुत अच्छी कविता। नाजुक एहसासों से भरपूर
bahut khuub....
What a creation......Its really really beutifully thought and written as welll.....bahot hi pyaaaari lagi sach me....
बहुत उम्दा और बेहतरीन भाव हैं. आनन्द आया पढ़कर.
बहुत ही सुंदर लिखा है आपने शिवानी जी बधाई अच्छी भाव पूर्ण रचना के लिए :)
बहुत अछे शिवानी ख़ूब लिखा है, कोशिश करो कि कुछ नए बिम्ब भी बनाने की, चांद को मध्यस्त कर अक्सर ऐसी बात कही गयी है, पर तुम्हारी कलम मे सच्चाई नज़र आती है, बनावट नही
क्या अब भी उसकी मीठी बातें
मीठा रस कानों में घोलती हैं ?
क्या अब भी उसकी खामोश आंखें
चुप रह कर भी सब बोलती हैं ?
क्या अब भी मेरी आशाओं का चेहरा
उसके चहरे से मिलता है
ऐसे नाज़ुक एहसास ! वाह..
शिवानी जी सच कहता हूँ ऐसी कविता लिखने की मैं बहुत कोशिश करता हूँ पर नही लिख पाता..
क्या ख़ूबसूरती से आपने अपनी बात कही है... पढ़ते हुए अच्छा लगा..
ऐसी ही लिखती रहिए और हाँ सजीव जी ने जो कहा क़ि नये बिंब बनाने की कोशिश कीजिए उस पर भी ध्यान दीजिएगा !
हाय!
रचना दिल में उतर गयी।
Hey really I liked it so muchhh!!!! Nice Imagination!!
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