ये ज़िन्दगी क्या है ? एक अजीब सा सवाल है !
कैसे समझे और कैसे जिए कोई
सबका अपना - अपना ख्याल है !
किसी की नज़र में,ये सिर्फ एक जाम है !
किसी की निगाह में,ये गम की एक शाम है !
कोई कहता है,ये शायर का एक ख़्वाब है !
कोई समझे,ये मौत के ख़त का जवाब है !
कोई ढूढता है इसे छोटी छोटी खुशियों में
कोई महफ़िलों में इसे तलाशता है !
है बोझ पत्थर सा किसी के सीने पर
किसी की झोली में खिला गुलाब है !
कोई जीता है इसे दीये की तरह जल कर
कोई दिलों को जला कर दिन गुज़ारता है !
गुज़ारता है हर पल,कोई समझ कर नसीब इसे
कोई चुनौतिओं से लड़ कर नसीब बनता है !
पैगाम है कहीँ ये दर्द का ,
तो खुशियों की कहीँ ये झंकार है !
कैसे समझे और कैसे जिए कोई
सबका अपना,अपना ख्याल है !
Friday, October 5, 2007
ज़िन्दगी - एक सवाल
Posted by शिवानी at Friday, October 05, 2007
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5 comments:
जिन्दगी!!! कैसी ये पहेली हाय!!!
इसी गुणा भाग में सब उलझे हैं, जिसने जैसी पाई वैसी जी.
ख्याल बेहतरीन है. कविता में बहाव है. बधाई.
चाहे किसी की नजरें कुछ भी तलाश करे पर इस तलाश मेंके लिए सबाल ही होता है…
बहुत ही अच्छा सबाल लिया है और बखूबी से इसे प्रस्तुत भी किया है…।
zindgi ko koi samaj nahi paya, jisni zindi jee hai woh to footpath par bhi zee lete hai varni mahelon me bhi zindgi nark hai...apka sawal achha hai
app bhahut achha likhti hai.
bahot hi khub,,,,,zindagi ke kai chehro ko bahot hi khubsurati se kavita ka roop diya....bahot badhiya.....
पैगाम है कहीँ ये दर्द का ,
तो खुशियों की कहीँ ये झंकार है !
कैसे समझे और कैसे जिए कोई
सबका अपना,अपना ख्याल है !
बहुत खूब शिवानी जी सुंदर ख्याल
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