Tuesday, October 30, 2007

हमें अच्छा नहीं लगता


यूँही चलते हुए एक दिन
जब हम उस बाग़ से गुज़रे!
और उस पेड़ के बडे पत्ते
हमारी राह में बिखरे !

मगर अब हम वहाँ दोबारा
कभी जाना नहीं चाहते !
भूले से भी वहाँ जाना
हमें अच्छा नहीं लगता !

वो महफिल याद है हमको
हमें महफिल-ए-जान कह देना !
हमारी हर बात पर सबका
वो हँसना खिलखिला देना !

मगर अब हम वहाँ दोबारा
कभी जाना नहीं चाहते !
किसी की बात पर हँसना
हमें अच्छा नहीं लगता !

गुलाबों के बडे गुलदस्ते
हमारी जान थे कल तक !
वो पीला रंग ,महक उनकी
हमारी जान थे कल तक !

मगर अफ़सोस ये रंगत
उदासी का सबब है अब !
गुलाबों का कहीं भी ज़िक्र
हमें अच्छा नहीं लगता !

Tuesday, October 9, 2007

मुद्दत


हाँ ,चांद ज़रा ये बतलाना
वो चांद वहाँ पर कैसा है ?
मुद्दत हो गयी देखे उसे
क्या हाल वहाँ पर उसका है ?
क्या अब भी उसकी मीठी बातें
मीठा रस कानों में घोलती हैं ?
क्या अब भी उसकी खामोश आंखें
चुप रह कर भी सब बोलती हैं ?
क्या अब भी मेरी आशाओं का चेहरा
उसके चहरे से मिलता है ?
क्या अब भी उसको बेबात पे ग़ुस्सा
यूं ही अक्सर आ जाता है ?
क्या भूलें भटके कभी नाम मेरा
उसके होंटों पर भी आता है ?
इतने दिन उसको देखे बिना
जो हाल यहाँ पर मेरा है !
सच सच तू मुझको बतलाना
क्या हाल वहाँ पर उसका है ?
तुम रोज़ यहाँ जब आते हो
उसके घर भी हो कर आना
मेरी सब बातों का उत्तर
अपने चहरे पर लिख लाना !
मैं जीं भर के तुमको देखूँगी
समझूंगी उसको देख लिया
फिर पढ़ कर तेरे चहरे को
उसके दिल का हाल मैं पढ़ लूंगी !
कल शाम को तू जल्दी आना
बेचैन मेरे दिलको बतलाना
वो चांद वहाँ पर कैसा है ?
मुद्दत हो गयी देखे उसे
क्या हाल वहाँ पर उसका है ?

Friday, October 5, 2007

ज़िन्दगी - एक सवाल

ये ज़िन्दगी क्या है ? एक अजीब सा सवाल है !
कैसे समझे और कैसे जिए कोई
सबका अपना - अपना ख्याल है !
किसी की नज़र में,ये सिर्फ एक जाम है !
किसी की निगाह में,ये गम की एक शाम है !
कोई कहता है,ये शायर का एक ख़्वाब है !
कोई समझे,ये मौत के ख़त का जवाब है !
कोई ढूढता है इसे छोटी छोटी खुशियों में
कोई महफ़िलों में इसे तलाशता है !
है बोझ पत्थर सा किसी के सीने पर
किसी की झोली में खिला गुलाब है !
कोई जीता है इसे दीये की तरह जल कर
कोई दिलों को जला कर दिन गुज़ारता है !
गुज़ारता है हर पल,कोई समझ कर नसीब इसे
कोई चुनौतिओं से लड़ कर नसीब बनता है !
पैगाम है कहीँ ये दर्द का ,
तो खुशियों की कहीँ ये झंकार है !
कैसे समझे और कैसे जिए कोई
सबका अपना,अपना ख्याल है !

Tuesday, October 2, 2007

गुजारिश

ऐसा नहीं कि आज मुझे चांद चाहिऐ
मुझको तुम्हारे प्यार में विश्वास चाहिऐ !
न की कभी भी ख्वाहिश मैंने सितारों की
ख्वाबों में बस तुम्हारा मुझे दीदार चाहिऐ !
मिल न सको मुझे तुम हकीकत में ग़र कभी
जन्नत में बस तुम्हारा मुझे साथ चाहिऐ !
मायूस हो चुके हैं अब जिन्दगी से हम
अब चाहिऐ तो मौत का पैगाम चाहिऐ !
जाओगे दफन करने जब मेरे जिस्म को
बस आखिरी दो पल का मुझे साथ चाहिऐ !
ऐसा नही कि आज मुझे चांद चाहिऐ
मुझको तुम्हारे प्यार में विश्वास चाहिऐ !