जब हम उस बाग़ से गुज़रे!
और उस पेड़ के बडे पत्ते
हमारी राह में बिखरे !
मगर अब हम वहाँ दोबारा
कभी जाना नहीं चाहते !
भूले से भी वहाँ जाना
हमें अच्छा नहीं लगता !
वो महफिल याद है हमको
हमें महफिल-ए-जान कह देना !
हमारी हर बात पर सबका
वो हँसना खिलखिला देना !
मगर अब हम वहाँ दोबारा
कभी जाना नहीं चाहते !
किसी की बात पर हँसना
हमें अच्छा नहीं लगता !
गुलाबों के बडे गुलदस्ते
हमारी जान थे कल तक !
वो पीला रंग ,महक उनकी
हमारी जान थे कल तक !
मगर अफ़सोस ये रंगत
उदासी का सबब है अब !
गुलाबों का कहीं भी ज़िक्र
हमें अच्छा नहीं लगता !