दोस्त बन कर तुमने
अपनी ही दोस्ती को दगा दिया ,
तुमसे तो दुश्मन भले
जो दुश्मनी तो निभाते हैं !
गंगा की तरह पाक
समझा था तुम्हे हमने !
करके मैला दोस्ती को ,तुमने
गंगाजल को नापाक किया !
कहते थे बड़े नाज़ से हम
हीरा है दोस्ती अपनी !
कमबख्त तब कहाँ जानते थे
हीरा भी कभी ज़हर बन जाता है !
इसे वक्त का ही तकाजा कहें
जो कभी हम पर लुटाते थे अपनी जान !
आज वो हर हाल में
हमारी जान के दुश्मन बने जाते हैं !
Friday, August 1, 2008
दगा
Posted by शिवानी at Friday, August 01, 2008
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3 comments:
बहुत सुन्दर लिखा है। बधाई।
Dil se likha hai aapne, badhaayi.
good efforts.we wish u all the best.....juhi
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