सन् १९९९ में दिसम्बर में १३३ साल बाद पूर्णमासी के दिन चाँद का आकार सामान्य से १४ % बड़ा था...
एक शताब्दी बाद आज आई ,
अनूठी चांदनी संग पूनम की रात !
उसकी बिखरी चांदनी मानो ,
चांदी की चादर बिछी हो धरती पर!
रात को मैं खिड़की से झांकी ,
देखा चाँद आज बहुत इतराया !
मैं बोली `ओ गगन के चाँद ',
बहुत इतराया एक युग के बाद !
माना आज तूने सुंदर रूप है पाया !
पर -एक चाँद इस धरती पर भी है ,
बरसों से उसने तुझसा रंग अपनाया !
मैंने आज छिपा रखा है घर में !
कहीं अगर वह आ जाए बाहर ,
उसकी चमक से तू फीका होगा !
सोचेंगे फ़िर ये दुनिया वाले ,
अब तक था ये इतना इतराया ,
फ़िर अचानक ये क्यूँ शरमाया !
इसीलिए रखने को तेरी लाज
अपना चाँद छुपा रखा है आज !
वह चाँद नहीं ,वह हीरा है !
वह हीरा नहीं ,वह कुंदन है !
कुंदन नहीं ,वह मेरे दिल का ,
प्यार भरा एक टुकडा है !
4 comments:
shivani ji kavita bhut achchi hai.aap chand par bhut kavitaye likhti hai.i love it .well done....juhi
कविता तो आपकी यह चाँद की तरह सुंदर है ही पर यह आपकी लिखी गजल और ऋषि जी की आवाज़ सुन कर मज़ा आ गया
पहले भी सुनती रहती हूँ ..पर यहाँ सुनना बहुत अच्छा लगा
वाह! बहुत सुन्दर.बहुत बधाई.
बधाइयाँ, बहुत अच्छी कविता!
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