खुशियाँ मेरे दरवाज़े तक आयी ,
मगर दहलीज़ लाँघ न पायी !
हाथ बडा कर उन्हे समेटना चाहा
चाहते हुए भी समेत न पायी
जीवन कि खुशियों को करने हासिल ,
कुछ दूर तक दौड़ना चाहा !
पर वक्त की रफ़्तार के संग ,
ज्यादा दूर तक दौड़ न पायी !
जीवन की शाम ढलने को है ,
मैंने खुशियों के चिराग जलाने चाहे !
दर्द की हवाओं से चिराग बुझने लगे ,
में गम के अँधेरे मिटा न पायी !
Tuesday, February 12, 2008
खुशियाँ
Posted by शिवानी at Tuesday, February 12, 2008
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2 comments:
bahut khub
यह रचना भी बहुत सुंदर लगी आपकी मुझे बहुत ही भाव पूर्ण है
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