एक एक पल,एक युग सा लगने लगा
सूनी सी नज़र आने लगी सब गलियाँ
ये शहर भी हमको अजनबी सा लगने लगा
जब आईने में देखी हमने अपनी सूरत
अपना चेहरा भी मुरझाया सा लगने लगा
मन बहलाने चले बगीचे की ओर
हर फूल भी कुम्ल्हाया सा लगने लगा
न वो बहार ,न खुशबू
सारा आलम ही बेगाना सा लगने लगा
तारों की बारात संग जब चाँद निकला
ये चाँद भी हमको धुंधला सा लगने लगा
आँखें बंद कर दो पल मन बहलाने लगे
बीता हर पल आज हमें याद आने लगा
हमने कुछ दिल से कहा ,कुछ दिल ने हमसे कहा
यूँही बातों में फ़िर वक्त गुजरने लगा
हम भी चल पड़े ये फ़ैसला करके
हमने क्या जुर्म किया जो ज़माने से डरेंगे
बस एक तुमको चाहा है ,हम हजारों में कहेंगे !
4 comments:
अच्छे भाव हैं. इन पंक्तियों पर ध्यान दीजिये.
हर फूल भी कुम्ल्हाया सा लगने लगा
न वो बहार ,न खुशबू
सारा आलम ही बेगाना सा लगने लगा
हर फूल भी कुम्ल्हाया सा लगने लगा
न वो बहार ,न खुशबू
सारा आलम ही बेगाना सा लगने लगा
bhut sundar. likhti rhe.
बहुत बढिया..शुभकामनाऐं.
bahut sunder.bahut achcha likhti hai aap.keep it up.....juhi
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