हैरान हूँ , परेशान हूँ !
जिंदगी के दाव पेचों से ,
पूरी तरह अनजान हूँ !
क्या यही खेल हैं जिंदगी के ,
कि अपने अपनों को छलते रहें,
अपनेपन का दिखावा करते रहें !
और हम धिक्कारते रहें
उनको
गैर कह कर ,
जो गैर हो कर भी ,
जान हम पर लुटाते रहें !
Thursday, June 19, 2008
हैरान हूँ
Posted by शिवानी at Thursday, June 19, 2008
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2 comments:
bhut hi sundar rachana hai.badhai ho.
Kya kahu, Sachchai ko bilkul samane lakar rakh diya hai....Awesome.
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