है याद तुमको देख कर
नज़रों का झुका लेना
मगर नज़रों की क़ैद से
तुमको कभी
रिहा न कर पाया मैं !
किया था कभी वादा
तुमसे मिलने का मेरे दोस्त
मगर वादों की जंजीर से
खुद को कभी
जुदा न कर पाया मैं !
सोचा था न करूंगा
ताउम्र तुम्हें याद
मगर यादों के बगीचे से
खुद को कभी
पार न कर पाया मैं !
कबका बिछड़ा हुआ आज
तेरे दर से जो गुज़रा
मगर चाहते हुए भी
एक पल को तेरा
दीदार न कर पाया मैं !
है दुआ मेरी की सदा
सलामत रहे तू
मगर तेरे सिवा
किसी और की कभी
इबादत न कर पाया मैं !