Tuesday, September 22, 2009

ख्वाब


उनींदी सी आंखों में
पलकों के पीछे
ख़्वाबों में जब तुम
चुपके से आए !
मेरा मन महका
कदम डगमगाए
कानों में आकर
जब तुम गुनगुनाये !
इन्हीं चंद शब्दों को
सुनने की हसरत
हकीकत से हट कर
क्यूँ ख़्वाबों में लाये !
है तुमसे गुजारिश
यही बात कहने
हकीकत में आते
क्यूँ ख़्वाबों में आए !
ख़्वाबों से निकल कर
चले आओ दिल में
समय के सफर से
हैं दो पल चुराए !

Thursday, September 10, 2009

अहसास

मैंने देखा नहीं है उसको
मगर हवाओं में महसूस किया है !
है ख़्वाबों में तस्वीर उसकी
मैंने तस्वीरों में महसूस किया है !
वो मेरे अहसाह ,मेरी बातों में है
मैंने अल्फाजों में महसूस किया है !
समझा है,चाहा है,सोचा है उसको
शायद मैंने जज्बातों में महसूस किया है !

Wednesday, September 2, 2009

सुलझी पहेली

शायद मैंने तुम्हें कुछ समझा है !
बहुत कुछ नज़र आने पर ,
तुम्हारा नज़रंदाज़ कर जाना !
बहुत कुछ कहना चाहने पर ,
तुम्हारा इज़हार न कर पाना !
बहुत सी प्रेम भावनाओं का ,
तुम्हारे मन में दब जाना !
किसीकी इच्छाओं को जान कर ,
तुम्हारा अनजान बन जाना !
मगर -
खुली किताब सी आँखें तुम्हारी ,
बहुत कुछ पढ़ा देती हैं अब मुझको !
अनायास ही बंद ,चुप होंठ तुम्हारे ,
बहुत कुछ बता देते हैं अब मुझको !
प्रेम भावनाएं लिए चेहरा तुम्हारा ,
बहुत कुछ कह देता है अब मुझको !
मनमोहक,मनमुग्ध,मुस्कान तुम्हारी ,
बहुत कुछ दर्शाती हैं अब मुझको !
हाँ,तुम अनबूझ पहेली थे अब तक ,
वो पहेली सुलझी नज़र आती है अब मुझको !

Saturday, August 29, 2009

एक शाम के नाम

सूरज का रथ लालिमा ले कर ,
निकल पड़ा था क्षितिज की ओर !
विशाल समुद्र के सपाट हृदय पर ,
उठ रहा था लहरों का शोर !
कलरव करते पक्षी भी अब,
ढूंढ रहे थे रैन बसेरा !
वहीँ दूर एक खड़ी थी किश्ती ,
जाने को अब घर की ओर !
सफ़ेद चमकती रेत पर बैठी ,
सोच रही थी मैं एक बात !
क्यूँ न आज कुछ पंक्तियाँ लिख कर ,
कर दोन उनको इस शाम के नाम !
मेरे जीवन की जब भी आए ,
ऐसी शाम सुहानी हो !
जो बीती ,जैसी भी बीती ,
आगे सुख भरी कहानी हो !
जब भी आए डोली मेरी ,
इस दुनिया से दूर जाने को !
विदा करना तुम मुझे सजा कर ,
जैसे दुल्हन नई नवेली हो !

Tuesday, August 18, 2009

जीवन यात्रा

जीवन एक यात्रा है ,जो शुरू होती है
बचपन की खुली ,चौडी ,साफ़ सडकों से !
जिनसे बचपन भागता सा गुज़र जाता है !
फ़िर नज़र आती हैं वही सड़कें
गली के रूप में !
जहाँ धीमी हो जाती है जीवन की रफ़्तार !
कुछ समय बाद शुरू होती हैं
पग डंडियाँ - छोटी ,बड़ी,लम्बी,पतली
यहीं से शुरू होता है ,आँख मिचोली का खेल !
जो इन पग डंडियों में भटक गया,
वही जीवनधारा में उलझ गया !
जिसने अपना रास्ता खोज लिया
समझो वही जीवन में जीत गया !
मैं भी भटक गई हूँ इन पग डंडियों में !
वहाँ आ खड़ी हूँ ,जहाँ से हर रास्ता
अंधेरे में खोया सा लगता है !
भटकने के डर से भयभीत
और सही मार्गदर्शन की उम्मीद ले खड़ी हूँ !
यात्रा का अंत कब और कहाँ होगा
मैं नहीं जानती !
मगर इतना जानती हूँ
कि---
जीवन यात्रा बहुत छोटी है !

Saturday, June 6, 2009

अपने शहर में

नसीब-ए-दर्द किसीसे ,हम कहना नहीं चाहते
अब अपने शहर में दिल-ए-सोज़ ,हम रहना नहीं चाहते !

हमने देखी है वफ़ा की आड़ में,बेवफाई उनकी
इस अफसाने को अब ,हम कहना नहीं चाहते
अब अपने शहर में दिल-ए-सोज़ ,हम रहना नहीं चाहते !

न समझें जज़्बात वो हमारे ,तो कोई बात नहीं
यूँ बेवजह हम भी ,उन्हें समझाना नहीं चाहते
अब अपने शहर में दिल-ए-सोज़ ,हम रहना नहीं चाहते !

भरते थे दम वो सरे महफ़िल ,जाँ निसारी का
ज़ख्म-ए-जिगर उनके दिए ,हम दिखाना नहीं चाहते
अब अपने शहर में दिल-ए-सोज़ ,हम रहना नहीं चाहते !

Saturday, April 25, 2009

तुम

तुम्हारी मुस्कराहट मेरे दिल को चुरा ले जाती है !
मैं कुछ कहना भी चाहूँ तो मुझे वो रोक लेती है !
सर्दियों में ओस की बूँद से अगर खेलना चाहूँ ,
न जाने क्यूँ तुम्हारी तस्वीर उभर के आती है !
पास अपनी हरदम महसूस होता है एक साया ,
तुम्हारी हर इक अदा नज़र उसमें भी आती है !
मैं भूले से अगर आँखें कभी बंद कर लूँ ,
ख्यालों में तुम्हारा चेहरा ही मन को भाता है !
कभी भूले से मन मेरा भटक भी जाए तो क्या ,
लगता है कि वो तुमसे मिल कर मेरे पास आता है !
मैं भूल जाऊं तुम्हें और न करूँ कभी याद ,
मेरा दिल हर वक्त अब यही चाहता है !
मगर -
मेरे चाहने या न चाहने से क्या होता है ,
वही होता है जो मंजूरे खुदा होता है !

Saturday, March 21, 2009

वो शाम

वो एक हसीं शाम थी
शायद वो उनके नाम थी
हर नजारे में उनका चेहरा था
वो तो गज़ब की शाम थी
उस राह से हम गुज़रे ही थे
अचानक नज़र वो आ गए
उनसे निगाहें क्या मिली
उनके चेहरे का रंग बदल गया
चेहरा सफ़ेद से सुर्ख हुआ
सुर्ख रंग शर्म में बदल गया
करीब से वो गुजरे ही थे
धीरे से हम कुछ कह गए
करके नज़रंदाज़ बातों को
सर को झुका वो चल दिए
एक बार फिर उसी राह पर
अचानक नज़र वो आ गए
जैसे ही हमने कुछ कहा
धीमे से वो कुछ कह गए
उनके लबों पे जो लफ्ज़ थे
वो लफ्ज़ काबिलेगौर थे
माना मंजिल हमारी एक थी
पर रास्ते हमारे और थे !